Final Year - अब अवसान के दिन आ गए - के तर्ज़ पर हमारे कॉलेज के दिन ख़त्म होने पर थे। पर साथ ही ये समय था, आगे के सफर की तैयारी करने की।
फाइनल ईयर के समय हॉस्टल का माहौल - शादी के अगले दिन के विदाई के समय सा था। हर्ष और विषाद के भावों के समावेश के साथ, हॉस्टल में चल रहे घटनाचक्र की - अगर आज उसकी फिल्म -एडिटिंग की जाती तो बैकग्राउंड में मुकेश के गाये इस गीत को अवश्य बजाया जाता -
गुलज़ार की लिखी पंक्तियाँ वाली हालत थे -
महत्वपूर्ण बात यह थी कि इन सभी संस्थानों में नौकरी पाने के लिए, पहले written exam होता था- जिसमे अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान सर्वथा आवश्यक थी। एक बार लिखित परीक्षा को सफलता पूर्वक पास कर जाने के बाद - Group Discussion अथवा Group Task में शामिल होना पड़ता था। इन सब व्याधाओं को सफलता पूर्वक पार कर लेने के पश्चात- व्यक्तिगत साक्षात्कार अर्थात face to face interview के लिए बुलाया जाता था। अंतिम चरण में होने वाले इंटरव्यू के दो ख़ास बात थे - इसके लिए टाई आवश्यक था और इस के लिए यात्रा की टिकट का खर्च, कंपनी वहन करती थी।
यथार्थ का ज्ञान सबसे कड़वा किन्तु सकारात्मक होता है, क्योंकि लोग प्रयासरत हो जाते हैं।
धीरे धीरे फाइनल ईयर के हॉस्टल में माहौल ऐसा होने लगा था कि ज्यादातर तादाद में लोग अब कॉलेज की पढ़ाई को छोड़ कर, अपनी अंग्रेज़ी के शब्द-संग्रह (vocabulary), अंग्रेज़ी व्याकरण, अंग्रेज़ी विशेलषनात्मक (analytical) - logical reasoning, Quantitative ability - इत्यादि अनेक तरह के दस-तरफे आक्रमण में घिर गए थे।
पूरे जंगल में सद्भावना रैली सी चल गयी थी। सभी नौकरी पाने के लिए कंपनी के प्रायोजित written exam के तैयारी में लग गए थे। कोई अजीबोगरीब शब्दों के जाल में फंसे - उनका मंत्रोच्चार करते हुए हॉस्टल के लॉबी में घुमते पाये जाते थे। कुछ मेस में खाने के टेबल पर बैठ कर कोई गणित के प्रश्न को हल करते हुए पाये जाते थे । कामेश्वर के ढाबे पर बैठे कर किसी analtycal प्रश्न के चक्कर में कुछ सिरफिरे निरर्थक सा वार्तालाप करते भी पाये जाते थे -
"If all cows are tree, and all trees are bird, and if some birds are fish then please answer the following:
- Are all trees Whale?
- How many Whales are cow?"
लोग जिस कदर पागल हो गए थे, मुझे आने वाले दिनों के कल्पना मात्र से सिहरन हो जाती थी।
… उन दिनों के हॉस्टल के माहौल और कुछ चुटीले किस्से अगले अंक में----
फाइनल ईयर के समय हॉस्टल का माहौल - शादी के अगले दिन के विदाई के समय सा था। हर्ष और विषाद के भावों के समावेश के साथ, हॉस्टल में चल रहे घटनाचक्र की - अगर आज उसकी फिल्म -एडिटिंग की जाती तो बैकग्राउंड में मुकेश के गाये इस गीत को अवश्य बजाया जाता -
चल री सजनी अब क्या रोये,कहाँ गयी वो फर्स्ट ईयर की शोखियां, वो हल्ला गुल्ला, वो खुलापन, वो हर गम - हर चिंता - हर फ़िक्र - से बेखबर और बेगाने होकर जीने का फन? अब तो हॉस्टल बहुत गमगीन और हताशे से भरा होने लगा था।
कजरा न बह जाए रोते रोते
दुल्हन बन के गोरी खड़ी है,
कोई नहीं अपना कैसी घड़ी है
कोई यहाँ , कोई वहाँ, कोई कहाँ रे…
गुलज़ार की लिखी पंक्तियाँ वाली हालत थे -
धुँधलाई हुई शाम थीउन दिनों डिग्री ले लेने के बाद दो ही विकल्प होते थे। पहला, बेरोजगार बनना-जो ज्यादातर लोगों के लिए मौलिक विकल्प था और भेड़-चाल के तर्ज़ पर इसका अनुसरण भी होता था। दूसरा था नौकरी के लिए प्रयास करना- निजी क्षेत्र में नौकरी मिलना आसमान में इंद्रधनुष दिखने जैसा था - किसी किसी को ही दीखता था । अलबत्ता, बरसात को अनुभव करने के जैसा - आम जनता के लिए Public Sector में इंजीनियर्स की भर्ती एक उत्तम मार्ग सा था। ज्यादातर अखबारों में - Trainee Engineer के आवेदन करने की विज्ञप्ति निकलते रहते थे। ईश्वर के अनेक नामों की तरह - Trainee के विभिन प्रकार थे, और इसे - Graduate Tainee, Management Trainee , Engineering Trainee आदि आदि- तरह के अनेकों नाम से पुकारा जाता था।
अलसाई हुई सी
और वक़्त भी बासी था मैं जब शहर में आया
हर शाख से लिपटे सन्नाटे खड़े थे
दीवारों से चिपकी हुई खामोशी पडी थी
राहों में नफ़्स कोई न परछाईं न साया
उन गलियों में कूचों में, अँधेरा न उजाला
दरवाजों के पट बंद थे, खाली थे दरीचे
बस वक़्त के कुछ बासी से टुकड़े थे, पड़े थे
मैं घूमता फिरता था सर-ए-शहर अकेला
दरवाजों पे आवाज़ लगता था, कोई है?
हर मोड़ पे रुक जाता था शायद कोई आये
लेकिन कोई आहट, कोई साया भी न आया
ये शहर अचानक ही मगर जाग पड़ा है
आवाज़े हिरासत में लिए मुझ को खड़ी हैं
आवाज़ों के इस शहर में मैं क़ैद पड़ा हूँ
महत्वपूर्ण बात यह थी कि इन सभी संस्थानों में नौकरी पाने के लिए, पहले written exam होता था- जिसमे अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान सर्वथा आवश्यक थी। एक बार लिखित परीक्षा को सफलता पूर्वक पास कर जाने के बाद - Group Discussion अथवा Group Task में शामिल होना पड़ता था। इन सब व्याधाओं को सफलता पूर्वक पार कर लेने के पश्चात- व्यक्तिगत साक्षात्कार अर्थात face to face interview के लिए बुलाया जाता था। अंतिम चरण में होने वाले इंटरव्यू के दो ख़ास बात थे - इसके लिए टाई आवश्यक था और इस के लिए यात्रा की टिकट का खर्च, कंपनी वहन करती थी।
यथार्थ का ज्ञान सबसे कड़वा किन्तु सकारात्मक होता है, क्योंकि लोग प्रयासरत हो जाते हैं।
धीरे धीरे फाइनल ईयर के हॉस्टल में माहौल ऐसा होने लगा था कि ज्यादातर तादाद में लोग अब कॉलेज की पढ़ाई को छोड़ कर, अपनी अंग्रेज़ी के शब्द-संग्रह (vocabulary), अंग्रेज़ी व्याकरण, अंग्रेज़ी विशेलषनात्मक (analytical) - logical reasoning, Quantitative ability - इत्यादि अनेक तरह के दस-तरफे आक्रमण में घिर गए थे।
पूरे जंगल में सद्भावना रैली सी चल गयी थी। सभी नौकरी पाने के लिए कंपनी के प्रायोजित written exam के तैयारी में लग गए थे। कोई अजीबोगरीब शब्दों के जाल में फंसे - उनका मंत्रोच्चार करते हुए हॉस्टल के लॉबी में घुमते पाये जाते थे। कुछ मेस में खाने के टेबल पर बैठ कर कोई गणित के प्रश्न को हल करते हुए पाये जाते थे । कामेश्वर के ढाबे पर बैठे कर किसी analtycal प्रश्न के चक्कर में कुछ सिरफिरे निरर्थक सा वार्तालाप करते भी पाये जाते थे -
"If all cows are tree, and all trees are bird, and if some birds are fish then please answer the following:
- Are all trees Whale?
- How many Whales are cow?"
लोग जिस कदर पागल हो गए थे, मुझे आने वाले दिनों के कल्पना मात्र से सिहरन हो जाती थी।
… उन दिनों के हॉस्टल के माहौल और कुछ चुटीले किस्से अगले अंक में----
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