Neutron Stars are composed mainly of neutrons and are produced when a Supernova explodes, forcing the protons and electrons to combine."बिहार इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के चयन पत्र के अनुसार, मुजफ्फरपुर इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) में साक्षात्कार - counselling- के लिए उपस्थित होने का निर्देश था। परीक्षा देने के लिए जाते समय के विपरीत, इस बार साथ कोई नहीं था। यह सफर बिलकुल अकेला ही करना था। इस से पहले मैं कभी मुजफ्फरपुर नहीं गया था। और इस बार मुझे ट्रेन के टिकट खरीदने की वैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी भी निभानी थी।
ट्रेन से रात का सफर था। सुबह मुजफ्फरपुर स्टेशन पहुंचने के पहले, तकरीबन हर १०० कदम पर, ट्रेन रुक रही थी। खिड़की से बाहर के दृश्य देखने से मुझे मुजफ्फरपुर, अविकसित शहर और विकसित गाँव के बीच के जैसा बोध हुआ। स्टेशन पहुंचने पर चारों ओर कृषि प्रधान सामान मसलन- अनाज, सब्जी या दूध के बड़े बड़े डिब्बे और इनसे मिलते जुलते अन्य सामग्रियों का बिखराव देखने को मिल रहा था। स्टेशन पहुँचने के पहले ट्रेन को इतनी बार रोका जा चुका था, कि स्टेशन पर मेरे अलावा, सिर्फ ट्रेन के कर्मचारी ही उतरते दिख रहे थे।
रेलवे स्टेशन के बाहर रिक्शों का जमावडा सा लगा हुआ था। रिक्शों के पीछे अनेक प्रकार के रंग बिरंगी चित्रकारी की हुई थी, जो मुख्य विषय वस्तु -नारी के श्रृंगार- पर केंद्रित था। अजंता एलोरा और खजुराहो के बीच के शैली में बनाये, कलात्मक अभिव्यक्तियों को देख कर, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शहर में ललित कला अपने चरमोत्कर्ष पर था।
प्रायः भारत के हर रिक्शा, टेम्पो, बस, ट्रक के पीछे चित्रकारी के एक ही विषय-वस्तु का होना, मुझे गहराई से उनके कारण के बारे में, सोचने को विवश कर दिया था। संभवतः गाड़ी चलाने वाले और चित्रकारों की धारणा थी कि चूँकि नर जाति पर गांधी जी का असर तो स्वाभाविक रूप से स्पष्ट दीखता था, क्योंकि गांधीजी के कम वस्त्र का उपयोग- गाँव का हर दूसरा व्यक्ति अपने शरीर को प्राकृतिक रूप में खुला बदन रख कर पालन कर रहा था, पर दुर्भाग्य-वश ग्रामीण क्षेत्र में अब भी नारियों में पर्दा प्रथा थी - राष्ट्रपिता गांधी के वस्त्रो का कम उपयोग करने के सन्देश से प्रेरित, नारी के इस तरह के चित्रण से, कालांतर में ग्रामीण इलाके के कोने कोने से पर्दा प्रथा उन्मूलन में , उनका योगदान सदियों तक याद किया जाएगा!
सवारी के अनुपात में रिक्शों की संख्या काफी ज्यादा था। भीड़ से कुछ अलग जैसी प्रक्रिया करने के उद्देश्य से चीख चिल्लाहट के बीच - कुछेक सिर्फ घंटियों को बजा कर अपना ध्यानाकर्षण कर रहे थे। अंततः मैंने एक से श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज ले जाने को कहा, जहाँ पर मेरे एक परिचित पढाई कर रहे थे। रात को मेडिकल कॉलेज में ही रूकने की व्यवस्था थी।
अगले दिन सुबह MIT कैंपस के लिए - अर्थात स्थानीय भाषा में ब्रह्मपुरा चौक की ओर- निकल गया।
रिक्शावाला कैंपस के अंदर तक छोड़ गया था। कैंपस में जितने भी चलते हुए लोग दिख रहे थे, वे सभी हवा की तरह, एक ही दिशा की ओर प्रवाहित हो रहे थे।उनके पीछे पीछे चलते हुए, मैं एक हॉल में पहुँच गया था। अंदर महाभारत के सेट की तरह, दरबारी के रोल में, काफी सारे लोग शांति पूर्वक बैठे से नज़र आ रहे थे। हॉल के अंदर बने स्टेज पर अनेक सारे मेज लगे हुए थे। हर मेज पर कुछ रजिस्टर और कागज़ों के ढेर के साथ कुछ सरकारी किस्म के लोग बैठे थे। बीच बीच में माइक से रोल नंबर और नाम की उद्घोषणा की जा रही थी । मैं एक खाली कुर्सी देख कर बैठ गया। सारे कागज़ातों को तैयार करके मैं अपने नाम के बुलाये जाने का इंतज़ार करने लगा।
सामने एक ब्लैक बोर्ड पर चॉक से बीच बीच में मिटा कर कुछ अपडेट किया जा रहा था। थोड़ी देर में समझ में आया कि उस ब्लैक बोर्ड के माध्यम से, REC- यानी बिहार के बाहर के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज के बचे सीट्स के बारे में, अवगत कराया जा रहा था।
अचानक से स्टेज से उद्घोषणा हुई कि - "MNREC, इलाहाबाद - फुल्ल!"
इतने स्पष्ट संवाद के बाद भी, भीड़ में से कुछ लोग - प्रायः अभिभावक किस्म के लोग- अलग से कुछ और स्पष्टीकरण लेने के उद्देश्य से, उस उद्घोषक से वार्तालाप स्थापित कर रहे थे। इस सिलसिले के बाद, कई और भी उत्साहित हो गए, और बढ़ती भीड़ को देखते हुए उद्घोषक ने फिर से -
"MNREC इलाहाबाद -फुल्ल - माने इलाहबाद का सब सीट खत्म हो गया है अब वहां और कोई सीट नहीं बचा है.…। "
इसे सुनने के बाद ज्यादातर लोग वापस अपने कुर्सी पर वापस आ गए थे। कुछ लोगों को अब भी कुछ और जानकारी चाहिए थी। वे जो कुछ पूछ रहे थे, वह उद्घोषक के अगले बुलेटिन से, हमें समझ में आ गया-
"जिस REC का नाम लिया जा रहा है उसी का सीट खत्म हुआ है, बाकी में अभी बचा हुआ है…"
अपने बात को और स्पष्ट करने के उद्देश्य से उसने बोर्ड की तरफ इशारा करते हुए कहा-
"वो सामने वाले बोर्ड को देखिये"
बोर्ड का जिक्र जिस तरह से किया गया था, उस से ब्लैक बोर्ड को अपडेट करने वाला कर्मचारी काफी नाराज़ दिख रहा था। कारण स्पष्ट था, REC और बाकी कॉलेज के सीट के खत्म होते ही चॉक से उसके अपडेट करने के बावजूद, लोग उसी के बारे में स्पष्टीकरण मांग रहे थे।
सरकारी काम था। इस लिए इसे बहुत ही नीरस, उबाऊ और धीमी गति से किया जा रहा था।
बहरहाल किसी तरह से मेरी एडमिशन की प्रक्रिया समाप्त हो गई- मुझे BIT के Electrical ब्रांच में एडमिशन मिला था - हालाँकि बाद में कॉलेज में मुझे मैकेनिकल में जगह मिल गयी थी।
स्टेज के एक कोने पर BIT सिंदरी का एक मेज था। मेरे सिंदरी कहते ही मुझे उस मेज की ओर भेज दिया गया। उस मेज पर बैठे व्यक्ति ने एकरसता से कॉलेज में एडमिशन, पढाई शुरू होने की तारीख और फीस आदि के बारे में सारी जानकारी देने के साथ साथ एक परचा भी काट दिया जिसमे मेरा रोल नंबर -86107 था।
इस तरह से एक लम्बी यात्रा के बाद, ज़िंदगी के एक और नए सफर के लिए मैंने रिजर्वेशन सा कर लिया था।
संभवतः अगस्त के दूसरे या तीसरे हफ्ते में सिंदरी आने को कहा गया था। भविष्य के सोच में डूबा, मुजफ्फरपुर से जमशेदपुर वापसी की सोचता मैं वहाँ से चल पड़ा।
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