अब तक आपने हमारे Mechanical '८६  के आधे लोगो के बारे में यहाँ पढ़ा था और अगर आप इसे पढ़ रहे हैं तो जाहिर है बाकी के बारे में भी जान ने को काफी उत्सुक होंगे, तो बिना किसी और रूकावट के इधर हाज़िर है  - दूसरा भाग - 
३६. प्रदीप कुमार चौधरी -  दीपू , अब इस दुनिया में नहीं रहे! यह अत्यधिक दिल को दुखाने वाला अनुभव है। आज भी मैं जब उसे याद करा रहा हूँ तो ऐसा लगता है कि वो अब भी यही कही अगल बगल है! यकीन ही नहीं होता की अब वो कभी नहीं मिलेगा! दीपू बहुत ही संवेदनशील और कम बोलने वाले लोगो में से था। दीपू अनजाने में भी किसी का अहित नहीं कर सकता था! काम बोलता था मगर जब भी कुछ बोलता था - उसमे हंसी के इतने पुट होते थे कि आज तक उसकी बातों पर हंसी आती है! हमेशा मुस्कराता से, पर कही खोया और अकेला सा रहता था। कॉलेज के दिनों में पढाई में ज़रा पिछड़ जाने के बाद इसने अदम्य साहस का परिचय दिया और इतनी पढाई की कि बाद में यह प्रोफेसर ही बन गया था!