BIT कैंपस में खुशी को मनाने के कुछ सीमित विकल्पों में से जो सबसे सस्ता और सर्वस्वीकार्य था वह ढाबे में समोसा, जलेबी और चाय की पार्टी। इस पार्टी की ख़ास बात यह होती थी कि ये किसी भी अकस्मात् खुशी के खबर मिलते ही तत्क्षण दी जाती थी।आम तौर पर इस तरह के पार्टी के दौरान  - सड़क पर हुए किसी हादसे में बिना कुछ किये ही इर्द गिर्द के प्रत्यक्षदर्शी "material interest" बन जाने की तरह, ढाबे पर बैठे कई लोग भी अनायास ही पार्टी का हिस्सा बन जाते थे। इस तरह के पार्टी में, लोगो की संख्या बढ़ती ही न चल जाए, इसलिए पार्टी देने वाला मौका मिलते ही ढाबे से भागने के चक्कर में होता था।

एक दिन इसी तरह के अचानक से हुए एक पार्टी का मैं भी हिस्सा बन गया। सफ़ेद चीनी मिट्टी के बने तश्तरी - जिसके किनारे के कई हिस्से टूट टूट कर अपनी आयु बता रहा था - जिस पर, "हिम्मत है तो मुझे कुछ देर तक यूँ ही देखते रहो", बोलता हुआ समोसा मेरे सामने आ गया था। पता चला कि यह अप्रत्याशित भेंट हमारे एक सीनियर चौधरी जी के सौजन्य से था जो अपनी शादी ठीक होने की खुशी - या जबरन खुश करवाये जाने - के एवज में था । आगे यह भी बताया गया कि लड़की अमेरिका में थी… यानी चौधरी जी के कॉलेज से निकलते ही हवाई जहाज का टिकट का प्रबंध हो चुका था और फिर सात समंदर पार! मतलब समय अब काफी कम था और इस से पहले कि चौधरीजी धरातल से ऊपर टेक ऑफ़ कर ले, लोगो ने उनको पकड़ लिया था और BIT के भाषा में उनका "मोचन" किया जा रहा था।

-----अतीतावलोकन (फ्लैशबैक)----- 

एक साल पहले तक, हॉस्टल १३ में चौधरी जी मेरे ही कमरे के सामने रहते थे। उन दिनों चौधरीजी 3rd year में थे और मैं 2nd ईयर में था। हम में से कुछ लोग सीनियर्स के हॉस्टल के बचे खाली single rooms  में - गाज़ा स्ट्रिप में बसाये गए फिलीस्तीनियों की तरह - पुनर्स्थापित कर दिए गए थे। सीनियर्स के साथ काफी हद तक घुलने मिलने के बावजूद, एक साल पहले तक उनके द्वारा रैगिंग किये जाने और बाकी वजहों से भी हम स्वतः एक सहज दूरी बना कर ही रहते थे।

B -zone के शुरुआत के दिनों में, ज्यादा समय मैं अपने ही कमरे में या अपने बैच के चंद लोग- जो मेरी तरह ही उस हॉस्टल में रहते थे और हर कोने में बिखरे हुए थे- उनके साथ ही समय बीताता था, पर धीरे धीरे चौधरीजी मुझसे बात करने लगे और मैं भी उनके कमरे में जाने लगा। फिर हमारी एक तरह से दोस्ती सी हो गयी और बातों बातों में पता चला कि चौधरीजी गांव के एक बहुत सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते थे। भारतीय किसानों के मानसून पर आश्रित रहने के परेशानियों के बारे में बचपन से पढ़ते आ रहे थे पर उसका प्रत्यक्ष परिणाम हॉस्टल के कई खेती पर आश्रित परिवारों से आये छात्रों की दशा को देख कर समझ में आने लगा था - और चौधरीजी उनमे से एक थे।

भारत के पडोसी मुल्को से - भौगोलिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और भी कई तरह के रिश्ते की तरह- चौधरी जी का भी हॉस्टल में सभी छात्रों से गहरे रिश्ते थे परन्तु उनके सामयिक रिश्तों में अनेकों कारण से कूटनीतिक उतार चढाव होता रहता था और फलस्वरूप उनके कमरे के सीमा पर छिटपुट घटनाएँ होती रहती थी- जो आम तौर पर ध्वनि प्रदुषण जैसे क्रियाकलापों से लिप्त होता था। परन्तु इन सबों के बावजूद उनके साथ मेरा सम्बन्ध फल फूल रहा था और कई बार मुझे - UN की तरह - उनकी ओर से बहुत सारे मुद्दों पर उनकी सफाई- जो शिकायत के काफी करीब सा होता था - उन्हें भी सुनना पड़ना था।

जल्द ही चौधरीजी ज्यादा समय अपने कमरे से गायब रहने लगे थे। मेरी उनके नज़दीकियों के कारण से कई बार लोग मेरे कमरे में रेलवे इन्क्वायरी काउंटर की तरह मुझसे उनके आने, जाने या कब कमरे में थे - और भी कई इसी तरह की जानकारियाँ लेने के साथ साथ अपनी आंतरिक भावनाओं से अवगत कराते कराते सुझाव पेटी में, कुछ अपने निजी विचार, सुझाव और सलाह की प्रविष्टि को डालते हुए चले जाते थे।

जब सुभाष चन्द्र बोस को अपने ही देश में कार्यवाही करने में व्यवधान आने लगा था तो वे जापान और अन्य देशों में जाकर अपनी पैठ बना लिए, ठीक उसी तरह से चौधरीजी भी प्रतिकूल समय में अनेकों मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा और अन्य नार्थ ईस्ट से आये छात्रों के साथ बहुत अच्छीे मित्रता बना ली और इस तरह से उनका जीवन पुनः पटरी पर आ गया था।

कुल मिला कर जिस तरह से विदेशी पर्यटक भारत के बारे में -रोमांचक, रहस्यमयी, रोचक, विविधता, अनेकता में एकता, और अन्य विशेषणों का उपयोग करते हैं - वे सब चौधरीजी पर भी लागू होता था।

-----अब आगे----- 

उन दिनों BIT से किसी छात्र के लिए अमेरिका जाना - सपने में आने वाले सपने - जैसा जटिल सा विचार था। कैंपस का ये हाल था कि हमारे आने के पिछले दशक में हुए जे पी छात्र आंदोलन का प्रभाव को तब भी अनुभव किया जा सकता था। अगर BIT के बारे में कोई अच्छे खबर को ढूँढना हो तो एकाध दशक पीछे जाना पड़ता था और हाल फिलहाल के सालों के कुछ काल्पनिक सी किवदंतियों का प्रचलन भी था - जैसे अमुक शिवाजी सिंह मैकेनिकल के टॉपर थे और वे IAS बन गए थे या और भी इसी तरह के खबर। वैसे अमेरिका से BIT का सम्बन्ध काफी गहरा रहा है, हमारे कॉलेज के दिनों में भी हमें पता था कि कई पुराने बैच के लोग वहां बसे थे परन्तु हमारे समय तक आते आते अमेरिका जाने वालों की संख्या बहुत कम ही रह गयी थी।

वैसे माहौल में चौधरी जी का अमेरिका का छलांग या उड़ान - और वह भी शादी के प्रस्ताव के रूप में - शायद स्वयं चौधरी जी के लिए भी आशातीत सा रहा होगा। उन दिनों एक Barron's Guide नाम की किताब होती थी जो एक टोटका सा था पर वास्तव में GMAT के तैयारी के लिए होता था। हर ऐसे धनवान, हिम्मतवाले या "मुंगेरीलाल" जो अपने हसीं सपनों में ये देखता था कि वह भविष्य में अमेरिका जाना चाहता था या किसी मैनेजमेंट कॉलेज जाने की इच्छाशक्ति रखता था, उस तरह के लोगों के द्वारा अपने सपने को जगजाहिर करने के उद्देश्य से Barron की कृति को खरीद कर कमरे में उसे रख देने की प्रथा सी थी। चौधरी जी के कमरे में भी बहुत स्पष्ट रूप से श्री श्री 108 -Barron-पुराण दिखता था पर मैंने उनको कभी उसे पलटते हुए नहीं देखा था।

चौधरीजी के अनेक सारे तात्कलिक एवं ऐतिहासिक कारणों से, जब यह खबर मिला कि उनका अमेरिका जाने का रास्ता इतनी आसानी से प्रशस्त होने को था, तो संसार के उन सारी तिलस्मी बाबा के द्वारा बनाये ताबीज़, चमत्कार और भी कई इन सब तरह के अजूबों पर यकीन होने लगा था कि शिद्दत से कुछ भी चाहो तो न सिर्फ बीवी परन्तु उसके साथ ख्वाब भी एक साथ पूरे हो जाते थे !

उनके होने वाली अमेरिकन पत्नी की कल्पना कर के भी बहुत ऐसे प्रश्नों में मन उलझ कर रह गया था, जिनको मुझे सोचने की न अब तक आवश्यकता पडी थी और न ही मुझमे उतने दूर तक की कल्पना करने की शक्ति थी। फिर भी अपने सीमित आय से ही ख्वाब देखने की तरह मैंने सोचना शुरू कर दिया और चौधरीजी  के आने वाले दिनों का गहन विचार करके कुछ प्रश्नों का सृजन कर ही डाले  -
  • क्या इनकी होने वाली पत्नी सिर्फ अंग्रेजी ही बोलती होगी?
  • अगर ऐसा है, तो चौधरीजी अपने होने वाली पत्नी को घर के बाकी लोगों से कैसे मिलवायेंगे?
  • चौधरीजी अपने दैनिक के बोलचाल में आने वाली हर चीज़ों का अनुवाद कैसे करेंगे?
  • क्या भविष्य में चौधरीजी के बच्चे भी अंग्रेजी ही बोलेंगे?
  • क्या वे भारत हमेशा के लिए छोड़ देंगे?
  • चौधरीजी अमेरिका में जा कर नौकरी कैसे करेंगे?
और न जाने ऐसे और कितने सारे प्रश्नों के बारे में मैं घंटो सोचता रहता और कई बार चौधरीजी से बात करने का दिल करता था, कि वे जूनून में ही थे या इन विषयों पर कुछ सोच भी रहे थे। पर अब वे पहले की तरह नहीं थे बल्कि उनकी पूछ बहुत बढ़ गयी थी और वे कई लोगों से हमेशा घिरे होते थे ।

चौधरीजी के शादी का धमाकेदार खबर ने उनके शेयर वैल्यू को कैंपस के मार्केट में अचानक से बहुत ऊपर पहुंचा दिया था और हर किसी के जुबान पर उनके ही चर्चे थे। साथ ही ये भी प्रश्न उठ रहा था कि किन लोगों को बारात में शरीक होने का मौका मिलने वाला था। परन्तु चौधरीजी  ने पहला काम ये किया कि उन्होंने अपने शादी के लिए बारात में सबों को आने का कोई खुला न्योता नहीं  दिया और सबों को "keep guessing" वाले कॉलम में डाल दिया था।      

कई लोग रुष्ट होने लगे थे - और उन कइयों में मैं भी था - मुझे भी कोई न्योता नही मिला था, जबकि करीब साल भर पहले तक लगभग मेरा उनके साथ रोज़ का ही उठना बैठना चल रहा था। मुझे उत्सुकता हुई और मैंने उनके मित्र मंडली में ये पता लगाने की कोशिश की कि आखिर उनके बारात में लोगो को शामिल करने का क्या मापदंड था?

पता चला कि चौधरीजी कि बारात में शामिल होने की अनिवार्यता थी - अंग्रेजी भाषा का ज्ञान !

उन दिनों चौधरीजी के शादी के बारात में जाने के लिए वास्तव में ऐसा होड़ लग गया था - या संभवतः लोग उनकी खिंचाई कर रहे थे -  परन्तु किसी ने पूरे कहानी को बहुत अच्छे ढंग से sum up किया कि -

"अगर किसीको चौधरीजी के बारात में जाना हो, पहले English speaking का classes ले लें क्योंकि उनके बारात में जाने के लिए group discussion को पास करना अनिवार्य था!"