A star is a luminous globe of gas producing its own heat and light by nuclear reactions (nuclear fusion). They are born from nebulae and consist mostly of hydrogen and helium gas.
जिस तरह से संसार के हर जीव - जिसमे आदम जात भी शामिल होता है - उनको ईश्वर के द्वारा दिए अपने शरीर को चलाने के लिए खाते रहने के अलावा कुछ और ख़ास नहीं करना पड़ता है, उसी हिसाब से फॉर्म भरने के जैसे यज्ञ का अनुष्ठान कर लेने के पश्चात और कुछ ख़ास नहीं करना पड़ा और करीबन डेढ़ महीने के अंदर ही लोगों के परीक्षा का एडमिट कार्ड आना शुरू हो गए थे। परन्तु इसके आने के क्रम का कोई पूर्वानुमेय सा बोध नहीं हो पा रहा था। खुद के एडमिट कार्ड न आने से व्यग्रता अपने चरमोत्कर्ष पर था-  जैसा कि "चलती का नाम गाड़ी" में किशोर कुमार के एक सुकन्या- मधुबाला- से संपर्क की कथा सुन कर उनके मंझले भ्राता रोदन स्वर में गाते थे - "ओ मन्नू तेरा हुआ अब मेरा क्या होगा!"

इस परीक्षा का एडमिट कार्ड एक लॉटरी की तरह था और ऐसा प्रतीत होता था मानो बिहार पर्यटन विभाग की ओर से इस परीक्षा के आयोजकों को निर्देश दिया गया था कि छात्रों को बिहार के हर एक कोने से परिचित कराया जाए। इसी योजना के तहत दक्षिण बिहार (अब झारखण्ड) के परीक्षार्थियों को ग्राम-जीवन से परिचय कराने के पुनीत उद्देश्य से छपरा, दरभंगा, पूर्णिया, कटिहार आदि जैसे - ग्राम और शहर के बीच झूलते से स्थानों में, जो बिहार के मानचित्र में कहीं स्थित है - ऐसा अनायास ही हमने कभी सुना था -  वहां के किसी हाई स्कूल या कॉलेज में परीक्षा केंद्र नियत किया जाता था।

परीक्षा की तिथि और केंद्र के स्थान का पता लगते ही लोग बहुत सामजिक हो जाते थे। उन दिनों, दो तरह के लोग बहुत मांग में होते थे - एक तो वे जो बरसों से परीक्षा देते आ रहे थे , जिस कारण से उनको इन सब जगहों का काफी कुछ पता हो चुका होता था। दूसरे वे लोग, जिनके सगे सम्बन्धी, परीक्षा केंद्र वाले शहर के आस पास रहते थे।

चूँकि उन दिनों - शायद आज भी- बिहार के शहरों में होटल की उपलब्धि नही के बराबर होती थी, अतः मंदिर, धर्मशाला, रेलवे स्टेशन के वेटिंग हाल या किसी रिश्तेदार के घर पर रहने के अलावा, परीक्षार्थियों के पास और कोई खास विकल्प नहीं होते थे।

यह कहना अतियशोक्ति नहीं होगी कि कई सालों से इस तरह के परीक्षाओ को देते आ रहे अनुभवी परीक्षार्थियों को - जो कई युगों से खेलते आये दिग्गज रणजी खिलाडियों के सरीखे थे - लगभग बिहार के सारे सुदूर शहरों के और उनके आस पास के परीक्षा केन्द्रों का व्यक्तिगत अनुभव होता था। अपनी इस उपयोगिता के कारण -हम ग्वाले से याचकों के समक्ष - वे दुधारू गाय की तरह खड़े हो जाते थे और अपने सामान्य ज्ञान की दुग्ध दे कर हमें तृप्त कर देते थे।

इस तरह से इस परीक्षा के आयोजको के एडमिट कार्ड में परीक्षा केंद्र के लिए अफ़लातूनी शहरों का चयन कर हमें भेजने के बाद, समाज में भाईचारा के बढ़ने जैसे उद्देश्य की पूर्ति हो जाती थी और साथ ही लोगों को बिहार के हर प्रान्त की जानकारी होना भी शुरू हो जाता था।

परीक्षा का नतीजा जो भी हो, इस बहाने कई शहरों का लोगो को व्यक्तिगत अनुभव हो जाता था और उन शहरों के विशेषताओं का भी ज्ञान हो जाता था - जो कहीं किसी किताब में नहीं मिल सकती थी - मसलन भागलपुर के मच्छरों के इतने शक्तिशाली होने का और उनकी प्रबल जनसंख्या का मुझे कदापि ज्ञान नहीं होता, अगर मैं इस परीक्षा में शरीक नहीं हुआ होता, क्योंकि मेरा परीक्षा का केंद्र उस शहर का टी एन बी कॉलेज था!