BIT में आकर हमें अब करीब ३-४ महीने हो गए थे। अब तक कॉलेज के फैक्ट्री में सब अपने-अपने "प्रोडक्शन असेंबली लाइन" में लग चुके थे। "आओ झूमे गाऐं, मिल के धूम मचाये, चुन ले गम के कांटे, खुशियों के फूल खिलाएं"- के तर्ज़ पर, सब अपने अपने इन्जिनीयरिंग के खेती के धंधे में लग गए थे। वैसे जिन लोगों ने इस गाने का फिल्मांकन देखा है, वे इस बात को मानेंगे कि इस फिल्म के मुताबिक -
१. भारत के गाँवों में, लोग इकट्ठे होकर, मिलजुल कर एक ही खेत में काम करते हैं,
२. किसानो के झुण्ड में ज्यादा युवावर्ग के होते हैं,
३. नवयुवक और नवयुवतियां कंधे से कंधे, और कई बार गले भी मिला कर,  हँसते-गाते खेती कर लेते हैं।



बचपन में इस गाने को चित्रहार में देखने के बाद - कई बार किसान बन जाने का संकल्प कर लिया था - और शायद वह इच्छा यूँ ही मर जाती पर "सर्वेयिंग एंड लेवलिंग" के दौरान इस गाने से उठे ख्वाब अब हकीकत में बदल गए थे!

BIT का कैंपस करीब ४०० एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ अनेकों इमारते हैं और इन इमारतों के अलावा बहुत बड़ा भाग खाली पड़ा है। मेरा अपना मत है की जिस तरह से आजकल किसानों की समस्या समझने के लिए, नेता-गण के गाँव जाकर, जमीनी हकीकत समझने का प्रचलन चल पड़ा है - उस परंपरा की नींव BIT में बहुत सालों पहले पडी थी - जब विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के लिए की गयी पदयात्रा की तरह - हरेक BIT के छात्र "सर्वेयिंग एंड लेवलिंग" के प्रोजेक्ट के दौरान, कॉलेज के हर कोने का परिक्रमा कर "तृण-मूल" अर्थात grass -root के सतह पर समझ जाते थे।

हरेक साल BIT में जो इन्जिनीयरिंग पढ़ने आते थे - उन्हें पहले साल ही एक पेपर - Surveying and Leveling पढ़ना होता था। बाकी विषयों की तरह सिर्फ - कानेटकर एंड कुलकर्णी की एक किताब को पढ़ कर, इस विषय को भी पास किया जा सकता था। वैसे हमारे इंजीनियरिंग के पूरी पढ़ाई का दारोमदार - ओ पी खन्ना और ग्रेवाल के ऊपर था, जिनके किताबों को पढ़ कर हर किसी ने आधी इन्जीनीयरिंग की पढाई की थी, और यह एक शोध का विषय हो सकता है कि आखिर Surveying and Leveling का विषय, श्री खन्ना के नज़र से कैसे बच गया था - और कानेटकर एवं कुलकर्णी को यह जहमत उठानी पडी थी।

परन्तु - Surveying and Leveling का विषय, इस लिए इतना महत्वपूर्ण हो जाता था क्योंकि इसमें 'फील्ड-वर्क' करना होता था। इस काम के लिए ७-८ के ग्रुप में बने टीम को BIT के विशाल क्षेत्रफल के किसी एक हिस्से का अध्ययन करना होता था और उसके बाद लिए गए measurements का लेख-जोखा करके, कागज पर चित्रांकित करना होता था। चूँकि इंजीनियरिंग का पहला साल पूरी तरह से "ब्रांच -मुक्त" होता था अर्थात फर्स्ट ईयर में सभी की पढाई कॉमन होती थी, इस लिए सभी ब्रांच के लोग विभाजन पूर्व के "अखंड-भारत" की तरह हमेशा प्रसन्न रहते थे और खंडित भारत से "सोने की चिड़िया" के उड़ जाने का ख्याल माइनिंग, सिविल, प्रोडक्शन, मेटल और मैकेनिकल वाले को बाकी ३ साल आते रहते थे।

ध्यान देने योग्य बात यह भी थी कि हमारे बैच तक आते आते इंजीनियरिंग के क्षेत्र में- विशेष कर सिंदरी भू-खंड में - नारी ने नर के साथ कंधे से कंधे मिला कर चलने का प्रण कर लिया था। ये लाज़मी था कि हरेक ग्रुप के बंटवारे में लड़के और लडकियां, साथ-साथ फील्ड में प्रोजेक्ट करने निकलते और ऐसा ही हुआ भी। इस के अलावा, दिन भर उन्मुक्त वातावरण में गप्प-शप करते हुए, पूरे हफ्ते भर क्लास से दूर Surveying and Leveling का प्रोजेक्ट करना,  BIT से पास किये हर बैच के जीवन-काल में "मील के पत्थर" सा है - हर किसी के अल्बम में एक पीली पड़ती पर आह की ताज़ी खुशबू को दबाये एक तस्वीर जरूर होगी, जो सर्वथा इसी दौरान, सभी टीम के सदस्यों के साथ, किसी पेड़ या झाड़-जंगल के साथ ली गयी होगी।

इस क्रम में एक theodolite, डम्पी लेवल और एक ज़ेबरा की तरह काले सफ़ेद मार्क किया हुआ डंडे (flagstaff) का इस्तेमाल किया जाता था। डम्पी लेवल और theodolite से दूर की चीज़े देखी जा सकती थी और कहने की आवश्यकता नहीं है कि flagstaff के बहाने दूरबीन किस किस टारगेट पर फोकस किया जाता होगा।

इस प्रोजेक्ट के दौरान हर किसी का पूरे कॉलेज के परिसर का एक परिक्रमा सा हो जाता था, जो कदाचित पद-यात्रा से ही संभव था। इस दौरान हमें अपने कॉलेज के बहुत सारे गौरवशाली अतीत का भी पता चलता था - मसलन हमें एक डायनासोर ज़माने की स्विमिंग पूल का खंडहर दिखा, कुछ पुराने हो चुके वर्कशॉप्स दिखे, कही कही एकाध टूटे फूटे लगभग जमीन के सतह तक पहुँच चुके कुछ ईमारत भी दिखे, जिनके नींव तक पहुँच जाने का कारण कालांतर में कोई हवा का झोंखा और erosion न हो कर संभवतः कृत्रिम था - मतलब सारे ईंटों के चोरी हो जाना ज्यादा तर्कसंगत लगता था। साथ ही हमें BIT के कैंपस के भौगोलिक एवं जैविक ज्ञान भी हुआ - पता चला कि उन घने जंगलों से रात को, जो सियार की आवाज़ आती थी- उनके रहने का कैम्पस में वाकई भरपूर ठिकाना था। साथ ही तरह तरह के फूल, पौधे, तितलियाँ, और अनेक प्रकार के साँपों के भी दर्शन होना आम बात थी। कुल मिला कर यह एक बहुत ही उत्साह वर्धक, ज्ञान-वर्धक एवं अनेको युवा दिल में गुलाबी सपनों को अंकुरित करने वाला FOSLA* प्रोजेक्ट था।

(* यह एक बहुत ही विवाद का विषय है कि FOSLA शब्द की उत्पत्ति क्या वाकई BIT में ही हुआ था? बहरहाल, आज के दिन यह शब्द, कम से कम भारत के हर कॉलेज की, एक सामान्य बोलचाल की भाषा में उपयोग होने वाले शब्दों में से एक बन चुका है)