BIT के शुरुआत के दिनों से अगले तीन सालों तक साथियों के साथ मिल जुल कर किये गए हवाई यात्रा, अब अपने ऊँचाई पर आ गयी थी। अब पारा-सेलिंग के लिए आसमान से छलांग लगाने का समय आ गया था। इतने दिनों की पढ़ाई करने के बाद मिलने वाले डिग्री के पैराशूट लगाये हम तैयार तो थे, पर इस तरह से जिंदगी के धरातल पर, अकेले हनुमान कूद लगाने की हिम्मत जुटाने में काफी समय लगा जा रहा था।
कल तक कॉलेज में पढ़ने वाले कई सीनियर्स कभी-कभी वापस कैंपस में दीख जाते थे। उनसे ज़िंदगी की कड़वी सच्चाइयों को सुनने के बाद ऐसा महसूस होता था कि - सिर्फ इंजीनियरिंग की डिग्री से न तो नौकरी मिल पाती है और न ही उस से कोई ख़ास गुज़ारा हो पाता है। अगर किसी तरह से नौकरी का जुगाड़ हो भी जाए तो आगे ज़िन्दगी के फर्नेस में और भी बहुत सारे ईंधन की ज़रूरत पड़ती थी - जिसका हमें अभी तक कोई अंदाज़ा ही नहीं था- अनुभव होना तो बहुत दूर की बात थी।
इस तरह से पुराने सीनियर्स के अनुभव से जो सबक मिला था, उसका परिणाम यह हुआ कि हमारे बैच के लगभग सभी के कंधे पर सिर के बोझ के अलावा उसके अंदर बढे हुए चिंता के कारण, भारी इज़ाफ़ा हो गया था !
इस "चिंता" के उत्प्रेरक ने, हमारे बैच में कई प्रतिक्रियाएं शुरू कर दिए थे। परिणामतः लोगों में भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन के तौर पर -'वेश-भूषा का परिवर्तन' और 'केमिकल लोचा' - से होने शुरू हो गए थे, यथा -
१. Competition Success Review - की खपत में भारी बढ़ोत्तरी
२. पुस्तक-महल से प्रकाशित होने वाली - उल्लू की किताब पढ़ती तस्वीर के साथ - रॅपिडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की खरीद में इज़ाफ़ा
३. अनेक सारे झुण्ड में बँट कर "अंग्रेज़ी में ग्रुप डिस्कशन" शुरू होना
४. अपने वेश-भूषा के प्रति जागरूक हो जाना - अर्थात दाढ़ी, बाल कटने के बाद इंसान के रूप में पहचानने योग्य बनने का प्रयास, और अंत में -
५. इंटरव्यू के लिए अच्छे कमीज और टाई खरीदना या उसके प्रति जाग्रति
पूरे बैच के इस तरह के काया पलट का प्रभाव था कि कल तक जो पाषाण युग के आदि-मानव से दीखते थे, वे अब सामान्य मनुष्य की भांति - देखा, सुना और - सूँघे भी जा सकते थे। सूंघने का तात्पर्य सर्वथा उनके सदियों से जल के प्रति घृणा से था जिसका असर उनके अगल बगल वाले पर पड़ता था।
कल तक जिनके मुख से हरेक दो शब्दों के बाद - 'बीप, बीप' - लगाने की आवश्यकता पड़ती थी, अब वे धाराप्रवाह ३-४ वाक्य बोल सकते थे, जिन्हे बिना किसी - 'केवल वयस्कों के लिए' - चेतावनी के सुना जा सकता था।
अचानक से अब मेस के टेबल पर, कैंपस, पढाई और मेस के खाने इत्यादि, जैसे तुच्छ विषयों से काफी ऊपर उठ कर, कुछ काम की बातें भी होने लगी थी। किसी नुक्कड़ के नेता से मंत्री और फिर भूतपूर्व मंत्री बन जाने के क्रम में - जिस तरह से बातों का विषय और लहजे को बदलते देखा जाता है, लगभग उसी तरह से अब अपने बैच में भी लोगों के विचारों में उद्भव होते देखा जा सकता था। मेस के टेबल पर, भविष्य में हो सकने वाले इंटरव्यू के प्रश्नो और ग्रुप डिस्कशन में दिए जाने वाले विषयों पर, चर्चा होने लगा था। इस तरह के चर्चा में, पिछले साल के सीनियर्स के अनुभव का, काफी प्रभाव देखा जा सकता था।
कुल मिला कर, हॉस्टल और इर्द गिर्द अब लोगों की बात, ठीक ठीक समझ में नहीं आती थी - एक तो अंग्रेज़ी बोलने के क्रम में लोग क्या कहना चाहते थे, वह ठीक तरीके से समझ में नहीं आता था। दूसरा, इस कारण से भी कि लोग अब कृत्रिम से हो गए थे - उनका बात करने के लहज़े में औपचारिकता का समावेश के साथ साथ अनेकानेक गंभीर विषयों पर - जिसे समझने में एक दुसरे को काफी समय लग जाता था।
बानगी के तौर पर एक बातचीत का अंश -
पहला -" गुड मारनिंग, हाउ आर यू?"
दूसरा - " थैंक्स, आई एम डूइंग वेरी गुड , हाउ आर यू?"
तपाक से पहले ने पूछा- " व्हाट डू यू थिंक अबाउट हॉट वेदर ऑफ़ द वर्ल्ड?"
दूसरा, थोड़ी झुंझलाहट के साथ -" दैट इस बैड"
पहला - "नइई -अरे, उ का कहते है- उ वाला टोपिक्वा का था भाई? कल रात जो वाला पर हमलोग डिस्कस्स किये थे.."
दूसरा - "ओहहो उ वाला … का तो कहते हैं - ग्लोबल वार्मिंग - वाला कह रहे हैं क्या?"
पहला झेंपते हुए - "यस यस, हाँ वही... सो, व्हाट डू यू थिंक अबाउट ग्लोबल वार्मिंग?"
दूसरा - "द वर्ल्ड इस फेसिंग ए ह्यूमन क्रिएटेड सीरियस प्रॉब्लम ऑफ़ लॉन्ग टर्म डैमेज व्हिच हैस सीरियस कंसीक्वेन्स फॉर जेनरेशन्स टू कम..... "
पहला तन्मयता से मंत्र मुग्ध होकर सुनता हुआ...सामने मेस सर्वेंट अपने काम में लगा, बगल मेज पर कुछ और लोग - सड़क के किनारे खड़े दुर्घटना को देखते से - मूक दर्शक के तरह निर्विकार भाव में, अब तक हिंदी और अंग्रेज़ी के प्रयोग से पूर्ण रूप से दुखी हो चुके मेस के स्थाई निवासी - कुत्ते … सब के सब इस प्रक्रिया में शमिल… और इस तरह से बड़े बड़े विषयों पर रटे रटाये तरीके से घंटों अभ्यास चलता रहता था।
पर यकीनन तहे दिल से - सलाम उस जज़्बे को!!
कल तक कॉलेज में पढ़ने वाले कई सीनियर्स कभी-कभी वापस कैंपस में दीख जाते थे। उनसे ज़िंदगी की कड़वी सच्चाइयों को सुनने के बाद ऐसा महसूस होता था कि - सिर्फ इंजीनियरिंग की डिग्री से न तो नौकरी मिल पाती है और न ही उस से कोई ख़ास गुज़ारा हो पाता है। अगर किसी तरह से नौकरी का जुगाड़ हो भी जाए तो आगे ज़िन्दगी के फर्नेस में और भी बहुत सारे ईंधन की ज़रूरत पड़ती थी - जिसका हमें अभी तक कोई अंदाज़ा ही नहीं था- अनुभव होना तो बहुत दूर की बात थी।
इस तरह से पुराने सीनियर्स के अनुभव से जो सबक मिला था, उसका परिणाम यह हुआ कि हमारे बैच के लगभग सभी के कंधे पर सिर के बोझ के अलावा उसके अंदर बढे हुए चिंता के कारण, भारी इज़ाफ़ा हो गया था !
इस "चिंता" के उत्प्रेरक ने, हमारे बैच में कई प्रतिक्रियाएं शुरू कर दिए थे। परिणामतः लोगों में भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन के तौर पर -'वेश-भूषा का परिवर्तन' और 'केमिकल लोचा' - से होने शुरू हो गए थे, यथा -
१. Competition Success Review - की खपत में भारी बढ़ोत्तरी
२. पुस्तक-महल से प्रकाशित होने वाली - उल्लू की किताब पढ़ती तस्वीर के साथ - रॅपिडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की खरीद में इज़ाफ़ा
३. अनेक सारे झुण्ड में बँट कर "अंग्रेज़ी में ग्रुप डिस्कशन" शुरू होना
४. अपने वेश-भूषा के प्रति जागरूक हो जाना - अर्थात दाढ़ी, बाल कटने के बाद इंसान के रूप में पहचानने योग्य बनने का प्रयास, और अंत में -
५. इंटरव्यू के लिए अच्छे कमीज और टाई खरीदना या उसके प्रति जाग्रति
पूरे बैच के इस तरह के काया पलट का प्रभाव था कि कल तक जो पाषाण युग के आदि-मानव से दीखते थे, वे अब सामान्य मनुष्य की भांति - देखा, सुना और - सूँघे भी जा सकते थे। सूंघने का तात्पर्य सर्वथा उनके सदियों से जल के प्रति घृणा से था जिसका असर उनके अगल बगल वाले पर पड़ता था।
कल तक जिनके मुख से हरेक दो शब्दों के बाद - 'बीप, बीप' - लगाने की आवश्यकता पड़ती थी, अब वे धाराप्रवाह ३-४ वाक्य बोल सकते थे, जिन्हे बिना किसी - 'केवल वयस्कों के लिए' - चेतावनी के सुना जा सकता था।
अचानक से अब मेस के टेबल पर, कैंपस, पढाई और मेस के खाने इत्यादि, जैसे तुच्छ विषयों से काफी ऊपर उठ कर, कुछ काम की बातें भी होने लगी थी। किसी नुक्कड़ के नेता से मंत्री और फिर भूतपूर्व मंत्री बन जाने के क्रम में - जिस तरह से बातों का विषय और लहजे को बदलते देखा जाता है, लगभग उसी तरह से अब अपने बैच में भी लोगों के विचारों में उद्भव होते देखा जा सकता था। मेस के टेबल पर, भविष्य में हो सकने वाले इंटरव्यू के प्रश्नो और ग्रुप डिस्कशन में दिए जाने वाले विषयों पर, चर्चा होने लगा था। इस तरह के चर्चा में, पिछले साल के सीनियर्स के अनुभव का, काफी प्रभाव देखा जा सकता था।
कुल मिला कर, हॉस्टल और इर्द गिर्द अब लोगों की बात, ठीक ठीक समझ में नहीं आती थी - एक तो अंग्रेज़ी बोलने के क्रम में लोग क्या कहना चाहते थे, वह ठीक तरीके से समझ में नहीं आता था। दूसरा, इस कारण से भी कि लोग अब कृत्रिम से हो गए थे - उनका बात करने के लहज़े में औपचारिकता का समावेश के साथ साथ अनेकानेक गंभीर विषयों पर - जिसे समझने में एक दुसरे को काफी समय लग जाता था।
बानगी के तौर पर एक बातचीत का अंश -
पहला -" गुड मारनिंग, हाउ आर यू?"
दूसरा - " थैंक्स, आई एम डूइंग वेरी गुड , हाउ आर यू?"
तपाक से पहले ने पूछा- " व्हाट डू यू थिंक अबाउट हॉट वेदर ऑफ़ द वर्ल्ड?"
दूसरा, थोड़ी झुंझलाहट के साथ -" दैट इस बैड"
पहला - "नइई -अरे, उ का कहते है- उ वाला टोपिक्वा का था भाई? कल रात जो वाला पर हमलोग डिस्कस्स किये थे.."
दूसरा - "ओहहो उ वाला … का तो कहते हैं - ग्लोबल वार्मिंग - वाला कह रहे हैं क्या?"
पहला झेंपते हुए - "यस यस, हाँ वही... सो, व्हाट डू यू थिंक अबाउट ग्लोबल वार्मिंग?"
दूसरा - "द वर्ल्ड इस फेसिंग ए ह्यूमन क्रिएटेड सीरियस प्रॉब्लम ऑफ़ लॉन्ग टर्म डैमेज व्हिच हैस सीरियस कंसीक्वेन्स फॉर जेनरेशन्स टू कम..... "
पहला तन्मयता से मंत्र मुग्ध होकर सुनता हुआ...सामने मेस सर्वेंट अपने काम में लगा, बगल मेज पर कुछ और लोग - सड़क के किनारे खड़े दुर्घटना को देखते से - मूक दर्शक के तरह निर्विकार भाव में, अब तक हिंदी और अंग्रेज़ी के प्रयोग से पूर्ण रूप से दुखी हो चुके मेस के स्थाई निवासी - कुत्ते … सब के सब इस प्रक्रिया में शमिल… और इस तरह से बड़े बड़े विषयों पर रटे रटाये तरीके से घंटों अभ्यास चलता रहता था।
पर यकीनन तहे दिल से - सलाम उस जज़्बे को!!
Lovely read!
ReplyDeleteपढकर मजा अा गया ।
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