आम तौर पर - "ज़िंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मकाम, वो फिर नहीं आते" के तर्ज़ पर, कॉलेज से एक बार घोंसला छोड़ के निकल जाने के बाद, सभी लोग आज़ाद पंछी की तरह दूर गगन में -बहुत दूर के सफर में निकल जाते हैं ! ऐसे में मुलाकात की सम्भावना कम ही रह जाती है। ऐसे ही कारणों से हमें भी एक दुसरे के बारे में कॉलेज से निकलने के बाद, करीब २० सालों तक कुछ ख़ास पता नहीं था।

BIT के '८६ सत्र में वाकई बहुत ही अलग किस्म के लोग थे! पर अनेको कारणों से, हमारे Mechanical '86 में और भी खुछ ख़ास हुआ करता था। कॉलेज के दिनोंं में भी Mechanical बदनाम से थे, क्योंकि अगर कैंपस में कहीं भी 'निकम्मों' का कोई झुण्ड दिख जाता था, तो बहुत ज्यादा संभावना थी कि उनमे ज्यादातर Mechanical का ही कोई न कोई होगा। कॉलेज में 'आवारागर्दी' करते हुए , जाने कब सभी ठीक ही ठाक से pass कर गए। कॉलेज से निकलने के बाद, Mech '86 के सभी भक्त-जन, दुनिया के अनेकों कोने में बिखर गए हैं!

वैसे तो मैं अपने बैच के सभी लोगों के साथ बहुत मस्ती की थी, पर अपने ब्रांच के लोगों के साथ ज्यादा समय बिताया। इस कारण, उनसे कुछ ज्यादा घनिष्टता बढ़ गयी थी। शायद इसका कारण यह हो सकता है कि हमें - 'मज़बूरी' में - सेशनल, प्रोजेक्ट और अन्य क्रियाकलापों के कारण - ज्यादा समय, एक साथ गुज़ारना पड़ा था।



Information Age का तकाज़ा है कि मैं अपने पुराने साथियों को यथासंभव खोज निकाल पाने में सफल रहा और अपने ब्रांच के करीबन 80% लोगों से सीधा सम्पर्क बन गया। इस महीने के २१ और २२ को हम वापस कॉलेज में मिलने वाले हैं - अपनी २५ साल पूरे होने के रजत जयंती के उपलक्ष्य में। इतने सालों बाद भी जैसे हम थे, आज भी हमरे बीच वैसे ही सम्बन्ध बरकरार हैं! मिसाल के तौर पर Mech का बहुत ही सक्रीय व्हाट्सप्प ग्रुप और एक दुसरे से फिर से मिलने की ख्वाहिश!

आइये, मैं आपको इन सब से परिचय करता हूँ। इनमे से कई व्यक्तित्वों का ज़िक्र तो यदा कदा, अलग अलग ब्लॉग पर तो होता ही रहता है- पर इधर मेरे अंदाज़ में इन सबों के बारे में संक्षिप्त परिचय -

१. अभय कुजूर - बहुत ही शांत स्वाभाव का - पढाई और खेल के बीच ध्यान देने वाला छात्र- हमारे समय कॉलेज के हॉकी टीम के कप्तान भी हुआ करता था।
२. अहमद कौनैन रज़ा - हम इसे 'रजा' के नाम से ज्यादा जानते थे। बहुत ही सरल और सौम्य स्वाभाव का, शायद हमारे ब्रांच के सबसे शरीफ बिरादरी में से एक। इनकी हिंदी और लिखने के अंदाज़ का पहले हमें कोई अनुभव नहीं था पर whatsapp में कभी कभी लिखते हैं, और बहुत खूब लिखते हैं!
३. अजय सिंह - मेरे पहले साल का रूम मेट। इनके बारे में मैं इतना जानता हूँ कि सारी घटनाएँ पर एक पूरा ब्लॉग लिखना पड़ेगा! संक्षेप में, एक बहुत ही मेघावी और मेहनती छात्र और उस से भी बढ़िया इंसान! अजय का अंग्रेज़ी में 'सोच कर' भोजपुरी के तड़का लगा कर हिंदी में बोलना सभी को याद है।
४. अलोक कुमार - शायद हमारे ब्रांच के 'विशाल' डील डॉल वाले में से एक- काफी भव्य व्यक्तित्व और बहुत सौम्य स्वाभाव के -कैमरा और फोटोग्राफी के शौक़ीन।
५. अखौरी प्रशांत कुमार - इनके रूप से ही पढाई का रस टपकता सा दिखता था।  हमेशा प्रसन्न रहने वाला और अपने एक ख़ास किस्म के मित्रों की टोली बना कर - 'शिष्ट मंडली' बना कर - प्रभात फेरी की तरह कैंपस में विचरण किया करते थे। किसी पहाड़ी नदी की तरह जोश और रफ़्तार से भरा हुआ!
६. अलोक कुमार सिंह - हमारे कॉलेज के सिविल के प्रोफेसर डॉ आर एन सिंह, जो बाद में डाइरेक्टर भी बने थे, उनके सुपुत्र। कैंपस में ही रहते थे - पर हॉस्टल में नहीं। बहुत शांत स्वाभाव के पर इनका सिर्फ पढ़ाई से वास्ता रहता था। फर्स्ट ईयर में हम सभी मिल कर पिकनिक मनाने गए थे जहाँ ये भी हमारे साथ गए थे, पर इसके बाद बहुत कम मिलना जुलना होता था।
७. अलोक वर्मा - "वर्मा जी" - एक बहुत ही प्रसिद्द व्यक्तित्व! इतने सालों बाद भी, वक्त - इनके स्वाभाव, भाव और आकृति - किसी का भी बाल बांका नहीं कर सका - बाल का भी नहीं, औरों की तरह ये गंजा नहीं हुए हैं! अगर किसी को भी समय के दौर में वापस जाना हो, तो इनसे एक बार बात कर ले! बेहद ही रोचक और प्यारे इंसान - कॉलेज के दिनों के याद आते ही, बरबस इनका चेहरा सामने आ जाता है ! मैं -कम से कम- इनके एक हज़ार दास्तानों को जानता हूँ, जो इतने रोचक हैं कि सुनने वाला - "इसके आगे?", "फिर क्या हुआ?", "सचमुच?"- जैसी अभिव्यक्तियों से भाव -विभोर हो जायेगा। वैसे इन्हें अब याद हो या न हो, हम लोगों ने मिल कर फर्स्ट ईयर में इनकी रैगिंग कर डाली थी! आगे Mech'86 के एक और शख्सियत का जिक्र आएगा, जिनके साथ - 'शर्मा-वर्मा' की जोड़ी बहुत विख्यात हुई थी…कभी इन पर विस्तार से चर्चा....वादा रहा!
८. अमर नाथ झा - बहुत शालीन, सौम्य और कॉलेज के दिनों में, कॉलेज के दिनों में एक बार भी गाली नहीं देने वाले - कुछ mechanical के अपवादों में से एक! पढ़ाई में इनकी पकड़ बहुत ज़बरदस्त थी, और उतनी ही फोटोग्राफी में भी! उन दिनों इनके पास एक SLR कैमरा होता था। हर छुट्टी के दौरान लिए तस्वीरों को हमें दिखाया करते थे - जो वाकई लाज़वाब होते थे। शायद, ये बाद में BIT फोटोग्राफी क्लब के 'नैया का खेवैया' भी बने थे! मैं इनके साथ एक बार दरभंगा गया था - बहुत ही रोचक अनुभव रहा था - कभी उस पर लिखूंगा!
९. अनुजित ऋतुराज - प्रसिद्ध नेतरहाट विद्यालय के देन - हिंदी के प्रकांड विद्वान। मेरे BIT में बिताये - कुल समय बट्टा दो - इनके साथ ही गुजरा था। जब मैं पहली बार कैंपस पहुंचा था, तो हॉस्टल १० के एक कमरे में, इनके साथ ही सामान को बंद कर एडमिन ब्लॉक गया था। विधि का विधान- कॉलेज से निकलते समय, अंतिम दिन भी इनसे ही करीब २०० रूपये लेकर निकला था, जिसे मैं इत्मीनान से हज़म कर गया। कभी कभी किसी सामान्य सी बात को, बहुत सहज ढंग से क्लिष्ट हिंदी में बोलना, इनकी फितरत में थी। मेरा विश्वास है कि BIT के आधे लोग, इनकी बातों को बिना समझे ही -'समझ' लेते थे - कारण था, इनकी हिंदी की भयानक शब्दावली और उसका प्रयोग!
१०. अरुण सिंह - बहुत ही शांत और पढाई लिखे करने वालों में से एक, BIT के ही प्रोफेसर के सुपुत्र- अतः हॉस्टल में नहीं रहते थे। मैं इनके साथ अपने एक और मित्र के शादी में गाँव गया था - जिसका वृतांत एक ब्लॉग में किया था। उस पूरे प्रकरण में साथ बिताये समय - एक बेहद मज़ेदार अनुभव था!
११. अरविन्द कुमार सिन्हा - प्रसिद्द पटना साइंस कॉलेज से पढ़ कर आया हुआ एक बहुत ही हंसमुख इंसान। मानसिक और शारीरिक - दोनों रूप में बहुत ही चुस्त! बैडमिंटन का एक बहुत ही कुशल खिलाड़ी। साथ ही, हर समय किसी न किसी चुटकुले का जिक्र करते - दोस्तों के साथ घिरा रहता था।
१२. अशोक कुमार - बहुत ही सीधा सादा व्यक्तित्व। 'सिर्फ और सिर्फ पढाई' - करने के उद्देश्य से आये छात्रों में से एक.. इनके दैनिक दिनचर्या का अगर लेखा-जोखा किया जाए तो - २ घंटे नित्य क्रिया कलापों के लिए, ६ घंटे सोने के लिए और बाकी बचे १६ घंटे पूरी तरह से पढाई जैसे - गहन कार्य के लिए समर्पित हुआ करता था। हॉस्टल के आधे समय ये कॉलेज के नोट्स को संयोजित करने और किताब के सवालों को solve करने में ही लगाया करते थे - और बाकी समय दोस्तों को भी पढा कर मदद करने में! हम इन्हें प्यार से- "डट्टा जी" पुकारने लगे थे। इस नामकरण की घटना कुछ इस तरह से हुई थी -
किसी इम्तिहान में किसी प्रश्न में बहुत सारे Data missing थे। सभी लोगों ने STP (standard temperature pressure) को मान कर, सवाल को हल कर आये थे। पर हॉस्टल आने के बाद, जब उन्हें ये पता चला तो लगभग चीखते हुए दुखी स्वर में कहा - "अरे लेकिन हम बनेब्बे नहीं किये क्योंकि हम तो सोचे की इसका डट्टा तो देब्बे नहीं किया है… !"
१३. अतुल कुमार - बहुत ही मजेदार व्यक्तित्व और हर पल मस्ती में रहने वाला इन्सान। अपने जमाने की एक कठिन परीक्षा -SCRA, को पास करने के बाद भी हमारे साथ कॉलेज में ही रह कर पढ़ाई करने के निर्णय लेने के बाद हम में से ज्यादातर लोग इनके बुद्धि और विवेक पर प्रश्न चिन्ह लगाना बंद कर दिए थे। उन दिनों एक Quiz comeptition जैसा कुछ कार्यक्रम सिविल के auditorium में हुआ करता था जिसमे दो लोगो की टीम हुआ करता था - मैं इसका पार्टनर था और सफलता का तो नहीं पर विफलता की स्थिति में मेरा बराबर से ज्यादा का योगदान हुआ करता था। भोजपुरी के कुछ विशेष शब्दों के अलंकार के साथ इनका बात करने का अंदाज़ निराला था - "का बुझनी हमनी के बत्तख?' या "अतुल कुमार फ्रॉम मोतिहारी" जैसे डायलॉग बहुत प्रसिद्द हुए थे। इनको जब खैनी के विशेष उपयोग करते हुए, उन दिनों के जरा हट के वाले मैगज़ीन - 'स्पोर्ट्स वर्ल्ड' या 'इंडिया टुडे' आदि को पढ़ते देखते, तो अचंभित हो जाते थे। सिंदरी पुलिस के साथ एक अविस्मरणीय साक्षात्कार के दौरान अतुल भी मेरे साथ था जो कभी नहीं भुलायेगा!
१४. बाप्पादित्य घोष - बिहार में बोले जाने वाले सभी भाषाओं के दृष्टिकोण से अगर सोचा जाए तो, इनका नाम -जरा अलग सा नाम था। इसलिए लोगों ने, इसे सिर्फ 'बाप्पा' बुलाना शुरू कर दिया था। बहुत ही शांत और 'पढाई से काम रखने वाला' - किस्म का इंसान हुआ करता था। अपने बंगाली होने के प्रमाण स्वरुप फुटबॉल-धर्म का भरपूर प्रदर्शन करता था और बेहतरीन खिलाड़ी था। गर्मी के समय, अपने सिर में एक पट्टी को बांधे हुए - खुले बदन - हॉस्टल के बरामदे में विचरण करते समय जो रूप प्रकट होता था - उस कारण से हम प्यार से इन्हे - "आदि मानव" - के नाम से सुशोभित कर दिए थे!
१५. बिनोद कुमार सिंह - लम्बे कद के बहुत ही सरल स्वाभाव के - शुरू के दिनों में चुप पर बाद के दिनों में काफी वोकल हो जाने वाले में से एक। क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी - गेंद करने के तरीके के कारण, इन्हें उन दिनों के ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज -रीड - के नाम से पुकारा जाने लगा था जो बाद में - रीडवा - के रूप में प्रचलित हो गया। कॉलेज के दिनों में मेरे साथ रहने वाले काफी करीब लोगों में से एक! कॉलेज के अंतिम चरण में हमारे - ग्रुप डिस्कशन में मेरा इनसे खूब झगड़ा होता था। कॉलेज से निकलने के बाद चंद लोगो में से एक - जिनकी शादी में - मैं शामिल हो पाया था।
१६. दीपांकर दासगुप्ता - बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न -डी डी या दीपू के नाम से ज्यादा जाने वाले - पढाई, खेल, क्विज, बात-चीत करने में माहिर! हमारे जमाने में कॉलेज में एक Leo Club हुआ करता था जो बाकी भी बहुत कुछ करता था और साथ में - Fresher of the year - का भी आयोजन करते थे। फर्स्ट ईयर में हम सभी लोग इसमें शामिल हुए थे। और अचानक से फाइनल राउंड में स्टेज पर, DD को देख कर बहुत प्रसन्नता हुई- बहुत ही रोचक ढंग से बोलने का अंदाज़ था और 'रनर-अप' रहा था। आने वाले दिनों में, लियो वाले ने इनको बागडोर की चाभी सौंप दी थी।
१७. दुर्गानन्द - अत्यंत रोचक व्यक्तित्व- BIT कैंपस की याद आते ही बरबस इनका चेहरा सामने उभर कर आ जाता है.. वैसे अनेको विशिष्टताओं में से कुछेक ख़ास - उन दिनों के south Bihar - झारखण्ड से आये लोगों में से चंद - लुंगी पहनने वालों में से एक हुआ करते थे। किसी भी विषय पर धाराप्रवाह बोलने की क्षमता रखने वाला व्यक्तित्व। कहना नहीं होगा कि - अप्रत्यक्ष रूप से कॉलेज के बारे में लिखे अनेको ब्लॉग में, इनका चित्रण हमेशा होता ही रहता है..इसलिए अभी के लिए इतना ही।
१८. गणेश कुमार - क्लास रूम में मेरा सबसे करीबी - पीछे के बेंच पर बैठ कर अनेकों संस्करण के लेखन और संपादन का साथ - हंसी का एक ऐसा खज़ाना कि आज भी अगर इनसे थोड़ी देर बात कर लो तो अगले कुछ दमय तक के लिए मन गुदगुदाता रहता है। दीन दुनिया से बेखबर, अक्सर हॉस्टल के किसी कोने में - गुड़ाखू से दांत को रगड़ते - पाये जाते थे। इनकी एक और ख़ास बात यह थी कि ये सब्जी के आलू जैसे थे - किसी भी ग्रुप के साथ घुल मिल जाते थे - मतलब निर्दलीय विधायक की तरह, हर कोई इनके समर्थन को मान के ही चलता था। जमशेदपुर से कई बार बस में साथ आता था और वे क्षण आज भी याद आता रहता है।
१९. गौतम नायक - शांत रहने वाला और क्लास में हमेशा पाये जाने वाले - आरुणि - सरीखे आदर्श छात्रों में से एक…
२०. हेमा बसराव - पूरे क्लास में अकेली - अबला नारी! जिस किसी ने इसे, फर्स्ट ईयर में वर्कशॉप के दौरान लोहे के बने हुए एक cube को chipping and filing करके smooth करते देखा होगा,  उसके बाद इसे अबला कहने के पहले सौ बार विचार करने को विवश हो जाना पड़ता होगा! बहुत ही खुशमिज़ाज, आत्म-विशवास से भरपूर, सबों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार रखने वाली - इस बात को समझने के लिए बहुत कल्पना शक्ति की आवश्यकता चाहिए - क्लास रूम के उस माहौल में, हेमा काँटों के बीच गुलाब की तरह होती थी!
२१. हिमांशु शेखर मिश्रा - ईश्वर के अनेको रूप होते हैं और उनमे से कुछेक रूप के बारे में कल्पना नहीं साक्षात्कार की आवश्यकता होती है - दक्षिणेश्वर के मंदिर में रामकृष्ण परमहंस के द्वारा काली माता के विकराल रूप के दर्शन करा देने के बाद - नरेंद्र से विवेकानंद का सफर चंद क्षणों में हो गया था! उसी प्रकार इनके दर्शन पा लेने के बाद - मनुष्य को अपने औकात का पता चल जाता था और मानव जीवन के अब तक के सफर पर निबंध लिखने का मन करता था!
इसके बारे में प्रसिद्द था कि लोगो से नोंक झोंक करते रहने के बावजूद, पढ़ाई के मामले में यह बहुत तेज़ था और इस कारण से हॉस्टल में,  अरब के सभी देशों के लाख विरोध के बावजूद - इज़रायल की तरह - ये पूर्ण रूप से स्वावलम्बी था। आगे, इनके बारे में जितना लिखा जाए वो कम ही है - 'हरि अनंत, हरि कथा अनन्ता'!
२२. हिमांशु सिंह - घर से पढाई के लिए - एक मिशन के तौर पर निकले - पढाई ही जीवन और जीवन ही पढाई - को साकार करने में सतत व्यस्त रहने वालों में से एक। पहले से काफी भिन्न - दुसरे हिमांशु - बहुत शांत और सौम्य स्वाभाव के - जिनको लोग 'बाबा' भी कहते थे। इनका कैंपस में संपर्क - हिंदी फिल्म में दिखाए एक बहुत ही छोटे -से खुशहाल गांव सरीखे - टॉपर वाले ग्रुप तक ही सीमित था। हमारे कॉलेज के समय के passtime hobbies - जैसे अनेकानेक तोड़-फोड़ या स्ट्राइक, धरना या घेराव इत्यादि जैसे extracurricular activities में शायद ही किसी ने इनको देखा हो!
२३. जय प्रकाश - जय क्लास, जय एग्जाम!! शांत संत सरीखे 'पढाई हमारा जनसिद्ध अधिकार है उसे हम समझ के रहेंगे ही जीवन है - के नारा को बुलंद करने वालों में से.
२४. महेंद्र साहनी - शांत और शायद मुझसे कभी इनकी कुछ ख़ास बात नहीं हुई।
२५. मनोज कुमार सिन्हा - पढाई और गाने के शौक़ीन। मैंने इनको ज्यादातर, जीवन के सबसे मौलिक रूप में देखा - मतलब मेस में आहार के ग्रहण के समय या फिर उसके दीक्षांत समारोह के अवसर पर- जहाँ अक्सर हम सबों की सुबह में मुलाकात हो जाती थी। त्याग करने के वेदना भरे अवसर पर भी इनके समर्पण का भाव, परीक्षा के लिए तैयारी से मिलता जुलता सा था। परीक्षा में कितनी भी तैयारी कर के जाने से जरूरी नहीं है कि फल मिल ही जाएगा। लगभग वही हाल के कारण शायद इस प्रक्रिया का नाम - शंका समाधान - बहुत सोच समझ कर रखा गया है।
२६. मनोज सिन्हा - संत - सरीखे स्वभाव के संसद के पूरे सत्र में कभी भी कोई मांग या स्वीकारोक्ति व्यक्त न करने वाले सांसदों की भांति - इन्हे क्लास में देखा जा सकता था पर कभी 'सुना' नहीं गया था ।
२७. मोहम्मद साजिद खैराती- बहुत ही शांत और हंसमुख स्वाभाव के, ज्यादा समय पढाई से मतलब रखने वाला इंसान। चश्मा के साथ बहुत ही पढ़ाकू सा दिखने वाला, इस मर्मस्पर्शी इंसान को समझने में ज़रा सा समय लगा पर धीरे धीरे पता चला की टॉपर की टोली में भी हंसी मज़ाक को जिन्दा रखने का ठेका वैसे ही ले रखा था जैसे सहारा इंडिया ने - भारतीय क्रिकेट टीम के sponserhip की। दरअसल, व्हाट्सप्प ग्रुप बन जाने के बाद इनकी विशेष टिप्पणियां इतने जबरदस्त होते हैं कि दिल करता है की इसे कुछ और लिखने के लिए प्रेरित या वाध्य कर दूँ! 'टॉपर के लीग' में, इसने खलबली मचा दी थी परन्तु साउथ अफ्रीका के क्रिकेट टीम की तरह आजतक कोई कप जीत नहीं पाये और अंततः Mechnaical के 2nd topper बन कर रह गए।
२८. मुकेश कुमार - पूरे चार साल में शायद सबसे कम बोलने वालों के पुरस्कार के हकदारों में से एक - बल्कि प्रबल प्रतिवंदी
२९. नलिन चाँद- कॉलेज के दिनों में मोटरसाइकल रखने वाले कुछ विशेष लोगों में से एक। इनका ज्यादा समय टॉपर किस्म के लोगों के साथ गुजरता था।
३०. नारायण झा - कैंपस में पारा के नीचे गिरने की शंका मात्र से ही एक हाफ स्वेटर को धारण कर लेना - बाकियों के लिए सर्दी के आने का प्रमाण के द्योतक हुआ करता था। अतयंत सरल स्वाभाव के और 'पढाई करना ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा है' - इस भावना से पढाई करने वाले लोगों में से एक।
३१. नीलंजन बिस्वास - जगन दा के नाम से ज्यादा जाने जाते थे। शांत बल्कि -अत्यधिक - शांत स्वाभाव में निर्विकार भावना से रहने के कारण, हर समय कुछ न कुछ कहानियां बनती रहती थी - उन अनेकों कहानियां में से एक, बकौल हमारे अहमद कौनैन रज़ा (व्हाट्सप्प में post किया था )-
"एक subject हुआ करता था - Transport Phenomenon जिसे short में TP भी कहा जाता था। इसे पढ़ाते थे - Prof. Mishra - मुंह में पान चबाते हुए वे "Curl" और " Del" इस्तेमाल करके खतरनाक equations की मदद से TP ऐसे पढ़ाते थे कि आम मनुष्य तो क्या, देवताओं के भी पल्ले कुछ नहीं पड़ता था। उनके क्लास में कोई तीन या चार लोग ही होते थे - Rajiv Srivastava, Sunil Pathak, SP Mandal और कोई एकाध भूला भटका। उन्होंने Sessional viva के दौरान, श्रीमान जगन से कोई सवाल पूछा, जिसके जवाब में श्री जगन ने कहा कि -"ये नहीं पढ़ाया गया था।"
प्रोफसर साहेब ने फिर पूछा की क्या वाकई "आप क्लास attend करते थे?"
जगन साहेब ने फरमाया कि वे तो सारी की सारी क्लास attend करते थे। फिर उन्होंने पूछा कि -"आप को TP कौन पढ़ता था ?"
जवाब मिला - "TP" Mishra!
फिर उन्होने पूछा कि -"अच्छा हम में से (board members में दिखाते हुए ) कोई आप को पढ़ाता था क्या? "
"नहीं"
फिर उन्होंने कहा की मैं जी आप लोगों को "TP" पढ़ाता था और मेरा नाम "TP" Mishra नहीं "SP" Mishra है."
वैसे जगन के बारे में ये भी प्रसिद्ध था कि परीक्षा देने के दौरान -इत्मीनान की एक नींद पूरी कर लेने जैसा - ज्यादा महत्वपूर्ण काम कर लिया करते थे !
३२. ओम प्रकाश साह - शांत स्वाभाव, और हमेश क्लास में पाया जाता था।
३३. फूलचंद रबिदास - शांत रहने वाले क्लास की qoram को पूरा करने वाले सदस्यों में से एक।
३४. प्रभात कुमार - हमारे कॉलेज के जितने भी लोग 'फेंकते थे' - ये विकेट के पीछे खड़े होकर बॉल को पकड़ते थे। सिंदरी शहर के ही थे अतः कॉलेज से घर और घर से कॉलेज- इसी क्रम में रहा करते थे। कॉलेज से निकलने के बाद हम एक ही जगह काम करने गए थे और इस कारण हमारी घनिष्टता बहुत बढ़ गयी थी।
३५. प्रदीप बर्णवाल - धनबाद के बगल के एक छोटे से शहर - महुदा के रहने वाले। इन्हें प्यार से हम - 'बरनाला' भी कहते थे। एक बहुत ही हरफनमौला किस्म के व्यक्ति! कविता, चित्रकारी और साथ में पढाई भी। बहुत हंसमुख - जिनकी हंसी की गूँज कोसो दूर तक सुनी जा सकती थी !